रविवार, 26 मार्च 2023

हरसिद्धी माता का सिद्ध शक्तिपीठ है रानगिर जहाँ 3 रूपों में दर्शन देती है माता

 नवरात्रि पर्व पर लगता विशाल मेला, जुटते है लाखों श्रद्धालु

बुंदेलखण्ड के सागर जिले में स्थित हरसिद्धी माता का रानगिर शक्तिपीठ प्राचीन काल से जन आस्थाओं का केन्द्र है। विंध्य की पर्वत श्रंखलाओं के मध्य प्राकृतिक सौन्दर्य और वन अच्छादित देहार नदी के किनारे स्थित इस पवित्र स्थल में माता हरसिद्धी 3 रूपों में दर्शन देकर भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण करती है। यह सागर से 40 किलोमीटर दूर रहली तहसील में स्थित है।

अपने नाम के अनुरूप अपने भक्तों की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने वाली माता हरिसिद्धि का यह शक्ति पीठ बुंदेलखण्ड वासियों के लिए एक महातीर्थ का स्थान रखता है। शक्ति और साधना के केन्द्र रानगिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की रान अर्थात जांध गिरने के कारण इस स्थान का नाम रानगिर पड़ गया और इस स्थान का प्रादुर्भाव शक्ति पीठ के रूप में हुआ। संसार की समस्त सिद्धियों कीस्वामिनी देवी हरसिद्धी अपने इस धाम में भक्तों की मनोकामनाए पूर्ण करती है। इसे जगत जननी माता के 52 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यहाँ नवरात्रि पर्व पर विशाल मेला भरता है जिसमें 9 दिवसों तक भक्तों का तांता लगा रहता है।

उज्जैन के सम्राठ विक्रमादित्य की कुुलदेवी है हरसिद्धी

अपने भक्तों को सभी कष्टों से बचाने वाली देवी हरसिद्धी का उल्लेख पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है।स्कंद पुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव के आवाहन पर जब माता जगत जननी ने चंड और प्रचण्ड नामक राक्षसों का संहार किया था तब भोलेनाथ ने माता के इस जग कल्याणी रूप को हरसिद्धी नाम दिया था। समस्त सिद्धियों की स्वामिनी माता हरसिद्धि से वर प्राप्त करने के लिए देवताओं को बड़े बड़े महिर्षियों ने तप किया है। भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैयनी में माता हरसिद्धी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।

Harsiddhi Mata Rangir

माता हरसिद्धी उज्जैन के महाप्रतापी चक्रवर्ती सम्राठ विक्रमादित्य की कुल देवी है उनकी माता के प्रति गहन आस्था और अनन्य भक्ति की कई कथाये प्रचलित है। माता के आशीर्वाद के कारण वह अनेक अलोकिक सिद्धियों के स्वामी बने, ऐसा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य अपनी कुल देवी हरसिद्धी को प्रसन्न करने के लिए अपना शीश काटकर चढ़ा दिया करते थे जिससे माता प्रगट होकर उन्हें जीवित कर आशीर्वाद प्रदान करती थी।

विक्रमादित्य के समय से आस्था का प्राचीन केन्द्र है रानगिर

मध्यप्रदेश के सागर जिले की रहली तहसील में स्थित रानगरि प्राचीन काल से जन आस्थाओं का केन्द्र है, शेर की आकृति वाली विध्य पर्वत मालाओं के मध्य स्थित इस धार्मिक क्षेत्र का उल्लेख समय समय पर इतिहासकारों द्वारा लिखे गये ग्रंथों एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है। 1925 में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर राय बहादुर हीरा लाल त्रिवेदी द्वारा लिखे गये गेजेटियर सागर सरोज में उल्लेख है कि इस देवीय स्थान पर जब बुंदेल राजा छत्रसाल अकबर के सेनापति खलिक शाह का पीछे करते हुए पहुँचे थे। तब स्थानीय लोगो ने उन्हे इस स्थान की धार्मिक पवित्रता एवं प्रसिद्धि से अवगत कराया था और इस स्थान पर युद्ध न करने की प्रार्थना की थी। 

Rangir Mata Mandir Sagar

धार्मिक क्षेत्र रानगिर में मिलने वाले पुरा अवशेष इस स्थान की प्राचीनता के कई तथ्य उजागर करते है मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित बूढ़ी रानगरि एवं दुर्गम पहाड़ी गुफा गौरी दंात नामक स्थान अत्यंत प्राचीनस्थल है। इन स्थानों पर विक्रमादित्य कालीन सोने के सिक्के मिले है जो इस धार्मिक स्थान की प्रचीनता को प्रमाणित करते है साथ ही इस स्थान से राजा विक्रमादित्य के संबंधों का उजागर करते है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह स्थान राजा विक्रमादित्य के वशंजों से भी संबंधित हो सकता है।

गिरी थी माता की रान इसलिए नाम पड़ा रानगिर

एक किदवंती के अनुसार कहा जाता है कि यक्ष राजा प्रजापति द्वारा यज्ञ में अपने पति भगवान भोलेनाथ को भाग ने दिये जाने से दुखित होकर सती माता ने उसी यज्ञ के हवनकुण्ड में अग्नि समाधि थी जिसके बाद उनके शोक में व्याकुल भगवान शिव आकाश मार्ग से उनकी देह लेकर विलाप कर रहे थे। जिससे उत्पन्न भयाभह स्थितियों से डरे देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की देह को कई टुकड़ों में विभक्त कर दिया है। माता सती की देह के अंग जिन स्थानों पर गिरे वह शक्ति पीठ के रूप में जाने जाते है। ऐसी मान्यता है कि सती माता की जांघ जिसे बुंदेली में रान कहा जाता है इस स्थान पर गिरी थी जिससे इस स्थान का नाम रानगिर के रूप में जाना जाता है। जो माता के प्रसिद्ध 52 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।

तीन रूपों में भक्तों की मुरादे पूरी करती है हरसिद्धी माता

रानगिर के हरसिद्धी माता के मंदिर को लेकर यूं तो कई की जनश्रुतिया प्रचलित है, परंतु एक विस्मयकारी कथा के अनुसार प्राचीन काल में इस वन क्षेत्र में लकड़िया एकत्र करने आने वाले ग्रामीणों को वन में अकस्मात कभी एक बालिका कभी एक युवती एवं कभी एक वृद्धा दिखाई देती थी। जंगल में लकड़हारों को पानी पिलाने वाली वृद्धा को लेकर उनके मन में कई प्रकार के प्रश्न उठते थे परंतु लोग उसे दृष्टिभ्रम या प्रचलित मान्यताओं से जोड़कर देखते थे। 

Harsiddhi Mata appears in 3 forms in a day

ग्रामीणों के साथ इस वन क्षेत्र में पहुँचने वाले बच्चों के साथ एक दिव्य बालिका अक्सर खेलती रहती थी जो बाद में शाम को उन्हे एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान करती थी। धीरे धीरे यह बात सार्वजनिक हो गई और ग्रामीणों ने ग्रामीण कन्याओं के साथ खेलने वाली उस सुन्दर और दिव्य कन्या का पीछा किया तो वह घने जंगल में स्थित बूढ़ी रानगिर नामक स्थान पर जाकर आलोप हो गई। इसके बाद ग्रामीणों को सपना देकर माता ने बताया कि वह बूढ़ी रानगिर में निवास करती है उसे रानगिर में स्थापित किया जाए। 

जब ग्रामीण स्वप्न में बताये स्थान पर पहुँचे तो उन्हें एक बेल पेड़ के नीचे एक पाषाण देवी प्रतिमा के दर्शन हुए जिसे वह श्रद्धा भाव से अपने साथ लाए और रानगिर नामक स्थान पर विराजमान कर दिया। उक्त प्रतिमा आज भी उसी स्थान पर विराजित है जो दिन के तीन पहर में अपने 3 रूप में दर्शन देकर भक्तों की मनोकामनाऐं पूरी करती है। सुबह पहुँचने वाले ग्रामीणों के लिए माता बालिका रूप में दिखाई देती है, दोपहर में वह एक युवती के रूप में एवं सायं काल पहुँचने वाले भक्तों के लिए वृद्धा के रूप दिखाई देती है।

प्राकृति की गोद में बसा रमणीय पर्यटक स्थल है रानगिर

सागर जिले के रहली तहसील में स्थित हरसिद्धि माता का पावन धाम रानगिर प्रकृति की गोद में स्थित अति रमणीय पर्यटक स्थल है जो चारो तरफ से विध्य पर्वत मेखलाओं से घिरा हुआ है। हरे भरे वनों से घिरे इस क्षेत्र होकर देहार नदी बहती है तो इसकी सुन्दरता को कई गुना बड़ा देती है। सागर जिले में घूमने के स्थानों में रानगिर को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है, एक धार्मिक स्थल होने के साथ ही यह एक पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु पहुँचते है।  

 कैसे पहुँचे शक्ति पीठ रानगिर मंदिर

रानगिर सड़क मार्ग पर राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर झांसी से लखनादौन के मध्य सागर जिले में स्थित है, राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर स्थित रानगिर तिराहे से मंदिर की दूरी सिर्फ 8 किलोमीटर है जहाँ डामलीकृत पक्की सड़क के जरिये पहुँचा जा सकता है। इस स्थान से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सागर है सागर से रानगिर दूरी 54 किलोमीटर है सड़क मार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग 44 यहाँ पहुँच सकते है। नरसिंहपुर की ओर से देवरी तहसील मुख्यालय से रानगिर की दूरी सिर्फ 35.4 किलोमीटर है। वही रहली से रानगिर की दूरी रामपुर गांव से होकर सिर्फ 25 किलोमीटर एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 44 से होकर 45 किलोमीटर है। 

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